ईरान के राष्ट्रपति मसऊद पीज़िश्कियान ने 39वें अंतर्राष्ट्रीय इस्लामी एकता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि अगर हम वास्तव में पैग़ंबर-ए-इस्लाम (स.अ.) के अनुयायी हैं तो आज 72 फ़िरक़ों और गुटों में क्यों बँटे हुए हैं, जबकि हमारी आँखों के सामने ज़ायोनी शासन मुसलमानों की हत्या कर रहा है और भूखे-प्यासे बच्चों पर पानी व खाने के रास्ते बंद कर रहा है।
राष्ट्रपति ने कहा कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम (स.अ.) ने मदीना हिजरत के तुरंत बाद पहला क़दम यह उठाया कि सदियों से दुश्मन रहे क़बीलों में भाईचारा क़ायम किया। यही रहस्य था कि ख़ून के प्यासे दुश्मन आपस में भाई बन गए। दस साल बाद जब मक्का फ़तह हुआ तो पैग़ंबर (स.अ.) ने घोषणा की कि मुसलमान, मुसलमान का भाई है।
डॉ. मसऊद पीज़िश्कियान ने कहा कि अगर उम्मत-ए-मुसलिमा वास्तव में एकजुट होती तो इस्राईल, अमेरिका या कोई और ताक़त मुसलमानों पर ग़लत नज़र डालने की हिम्मत न करती। असली मसला दुश्मन नहीं बल्कि हमारी आपसी लड़ाइयाँ और तफ़रक़े हैं। हमें वही अमली इत्तेहाद क़ायम करना होगा जिसकी हिदायत पैग़ंबर (स.अ.) ने दी थी।
उन्होंने ज़ायोनी जुर्मों पर ख़ामोशी की निंदा करते हुए कहा कि इस्राईल औरतों और बच्चों को क़त्ल करता है। इस पर विरोध जताने के बजाय दुनियाले उसे उचित ठहराते है। अगर किसी इस्लामी मुल्क में ऐसा कोई वाक़िआ पेश आए तो पश्चिमी हुकूमतें फ़ौरन मानवाधिकार का शोर मचाती हैं। आख़िर कौन सा इंसानी हक़ है जो बच्चों, औरतों और मरीज़ों के क़त्ले-आम को जायज़ ठहराता है?
ईरान के राष्ट्रपति ने इमाम हुसैन (अ.स.) का कथन याद दिलाया कि अगर तुम धर्म नहीं रखते तो कम से कम आज़ाद तो बनो। उन्होंने कहा कि असली क़सूर पश्चिमी जगत या इस्राईल का नहीं, हमारी अपनी कमज़ोरियों और आपसी झगड़ों का है, जिनसे दुश्मन फ़ायदा उठाता है और हमारे संसाधन लूट लेता है।
मसऊद पीज़िश्कियान ने ज़ोर देकर कहा कि ईरान किसी भी मुस्लिम मुल्क से जंग नहीं चाहता लेकिन किसी क़िस्म की ज़्यादती भी बर्दाश्त नहीं करेगा। ईरानी जनता ने दुश्मनों को दो तरह के तमाचे मारे हैं: एक मैदान-ए-जंग में सशस्त्र सेनाओं के माध्यम से, और दूसरा जनता ने अपनी एकता और प्रतिरोध से। अमेरिका और इस्राईल समझते थे कि दबाव और कुछ हमलों से डरकर लोग बग़ावत कर देंगे, लेकिन जनता ने उनके ख्वाब चकनाचूर कर दिए।
अंत में राष्ट्रपति मसऊद पीज़िश्कियान ने कहा कि अगर मुसलमान एक हो जाएँ तो दोबारा इज़्ज़त और सरबुलंदी हासिल कर सकते हैं। अल्लाह की किताब इसी मक़सद के लिए नाज़िल हुई है मगर हमने आपसी इख़्तिलाफ़ात को बढ़ाकर दुश्मनों को मौक़ा दिया है।
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